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संसद में भी दिखेंगे प्रियंका के तीखे तेवर? दक्षिण से कांग्रेस का रिश्ता रहेगा कायम!
News Date:- 2024-06-18
संसद में भी दिखेंगे प्रियंका के तीखे तेवर? दक्षिण से कांग्रेस का रिश्ता रहेगा कायम!
Peeyush tripathi

लखनऊ,18 Jun 2024

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट छोड़कर रायबरेली लोकसभा सीट से सांसद बने रहेंगे। वहीं वायनाड से राहुल की बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में  उपचुनाव लड़ेंगी। सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बताया कि राहुल रायबरेली से सांसद बने रहेंगे क्योंकि गांधी परिवार का रायबरेली-अमेठी से पुराना नाता है वहीं प्रियंका गांधी वायनाड वालों को राहुल की कमी नहीं खलने देंगीं। दक्षिण भारत से कांग्रेस परिवार का वैसे भी पुराना नाता है। इस रिश्ते की शुरुआत प्रियंका की दादी इंदिरा गांधी ने 1978 में आपातकाल खत्म होने के बाद की थी जब उन्होंने कर्नाटक के चिकमंगलूर से चुनाव जीता । उस समय इंदिरा गांधी को लोकसभा पहुंचने के लिए एक सुरक्षित सीट की तलाश थी क्योंकि उन्हें रायबरेली से संसद पहुंचना मुश्किल लग रहा था। इसके बाद इंदिरा गांधी ने 1980 में तत्कालीन आंध्र प्रदेश के मेडक से चुनाव जीता। 1999 में प्रियंका की मां सोनिया गांधी ने भी कर्नाटक के बेल्लारी से चुनाव लड़ा और भाजपा की सुषमा स्वराज को हराकर लोकसभा पहुंचीं। वहीं राहुल गांधी 2019 में केरल के वायनाड से लोकसभा पहुंचे जबकि वह अमेठी से स्मृति ईरानी के हाथों चुनाव हार गये ।

अमेठी में इस बार बाजी पलट गई और राहुल सोनिया के प्रतिनिधि रहे किशोरीलाल शर्मा ने स्मृति ईरानी को हरा दिया । वहीं राहुल गांधी ने तीन लाख वोटों से रायबरेली सीट जीत ली और कांग्रेस की जीत के सिलसिले को बरकरार रखा । अमेठी- रायबरेली सहित यूपी की छह सीटों पर मिली जीत से कांग्रेस को प्रदेश में संजीवनी मिल गई है। अब राहुल गांधी ने फैसला किया है कि वह रायबरेली की सीट अपने पास रखेंगे और वायनाड से प्रियंका उपचुनाव लडेंगी।

वायनाड में भी जिस तरह से राहुल को दूसरी बार जीत मिली है उससे प्रियंका के लिए वायनाड सीट से लोकसभा पहुंचना आसान माना जा रहा है। स्वयं प्रियंका गांधी की लोकप्रियता और जूझने की शक्ति राहुल से कम नहीं है। इस बार रायबरेली-अमेठी और यूपी की जीत में प्रियंका के योगदान को नकारा नहीं जा सकता । 

रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस की राजनीति और गांधी परिवार को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार गौरव अवस्थी बताते हैं कि लोग प्रियंका में इंदिरा का अक्स देखते हैं। इसीलिए लोग उन्हें 'दूसरी इंदिरा' मानते हैं।1988 में आश्चर्यजनक रूप से लोगों ने पहली बार प्रियंका गांधी को मंच पर देखा। इससे चार साल पहले दादी इंदिरा गांधी की हत्या और 3 साल बाद पिता राजीव गांधी का बलिदान हो गया । फिर आठ साल तक प्रियंका को फिर कहीं किसी ने नहीं देखा।

पति राजीव गांधी की शहादत के बाद सोनिया गांधी ने लंबे अंतराल तक 10 जनपद से बाहर नहीं झांका। राजनीति से भी दूरी बनाए रखी लेकिन नेताओं कार्यकर्ताओं के अनुनय-विनय पर उन्होंने कांग्रेस को मजबूत करने के लिए 1999 में राजनीति में कदम रखा। अमेठी से चुनाव लड़ने को तैयार हुईं। प्रियंका सार्वजनिक रूप से दोबारा अमेठी में तभी दिखीं लेकिन पर्दे के पीछे चुनाव मैनेजर के रूप में। अमेठी में अपने मजबूत चुनावी प्रबंधन कौशल से प्रियंका गांधी ने सबको हैरान कर दिया। दादी के नैन नक्श वाली प्रियंका ने लोगों में उसी साल इससे बड़ी हैरानी रायबरेली के चुनावी सभाओं के दौरान पैदा की।

1999 में ही पिता राजीव गांधी के बाल सखा कैप्टन सतीश शर्मा रायबरेली से भाग्य आजमा रहे थे। भाजपा से सामने थे खानदान के अरुण नेहरू। वह तारीख थी 29 सितंबर। हमेशा मुस्कुराते रहने वाली प्रियंका का चेहरा उस दिन गुस्से से लाल था। उनके भाषण की पहली ही लाइन थी-' परिवार की पीठ में छुरा घोंपने वाले गद्दार (अरुण नेहरू) को आपने रायबरेली में घुसने कैसे दिया?' बस इस एक वाक्य से रायबरेली में कांग्रेस की हारी हुई बाजी जीत में बदल गई। उस एक दिन में प्रियंका ने 20 छोटी बड़ी चुनावी सभाएं कीं। करीब 200 किलोमीटर लंबी दूरी तय की। महज 25 साल की उम्र में रायबरेली में अपना पहला सार्वजनिक भाषण देकर प्रियंका ने तभी रायबरेली के लोगों के दिलों में स्थाई स्थान बना लिया। यह राज आज तक कायम है।

तमाम खूबियों वाली प्रियंका तब लोगों के और आकर्षण का केंद्र बन जाती हैं जब पिता के हत्यारे को वह माफी देती हैं। सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में व्यस्तता के बावजूद मां सोनिया गांधी के लिए खुद को अच्छी बेटी और बच्चों ( रेहान एवं मिराया) के लिए अच्छी मां के रूप में पेश करती हैं। तभी तो रायबरेली में मंच पर मां सोनिया गांधी के गाल पर चिकोटी काटती दिखती हैं और चुनाव में मतदान के बाद बच्चों को रिक्शे पर लेकर घूमने भी निकल पड़ती हैं। बेटी और मां ही नहीं बहन के रोल में भी प्रियंका प्रियंका ही हैं। भाई राहुल के लिए ही वह अब तक अपने को चुनावी राजनीति से अपने को दूर रखती चली आ रही हैं।

 

राजनीति में कांग्रेस के इस नाजुक मुकाम और हर तरफ से चुनाव लड़ाने की डिमांड के बावजूद सक्रिय चुनावी राजनीति में उतरने के सवाल को मां और भाई के निर्णय पर छोड़कर प्रियंका गांधी अपनी परिपक्वता का परिचय देती हैं। कोई कितने ही आक्षेप उन पर लगाए लेकिन प्रियंका गांधी के पास हर आरोप और सवाल का जवाब हर वक्त अपनी 'मधुर मुस्कान' में मौजूद रहता है। इसीलिए लोगों को यकीं है कि यह मुस्कान ही कांग्रेस का वक्त बदलेगी और देश की राजनीति भी। अब जब गांधी परिवार की तीसरी पीढ़ी की प्रतिनिधि के तौर पर प्रियंका गांधी वायनाड से चुनावी राजनीति की शुरुआत करने जा रही हैं तब जनसभाओं की तरह संसद में भी उनके तेवर वाली स्पीच सुनने को मिल सकती है।

साभार गौरव अवस्थी , वरिष्ठ पत्रकार , रायबरेली

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